Wednesday, April 16, 2014

मुसलमानों की निष्ठा का इतिहास और वर्तमान

जब से आज़म खान का कारगिल की लड़ाई पर मुसलमानों को ले कर  बयान आया है।  तब से   मुसलमानों की देशभक्ति पर बेहेस छिड़ गयी है । अब ऐसा नहीं है की भारत में देशभक्त मुसलमान नहीं हुए अशफाक उल्लाह खान जैसे बहुत से नाम हैं जिन पर हर भारत वासी को गर्व है और आज भी वीर अब्दुल हमीद की बहादुरी पर भी भारत को गर्व है।  और पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुलकलाम तो मेरे जीवन आदर्श हैं।
                  इन सब बातों को याद करने का कारन ये बताना है की देशभक्ति किसी पंथ की मोहताज नहीं है।  अब जो में कहने जा रहा हूँ वो बात कड़वी है पर सोच कर देखिएगा सच है।
                   शुरू से ही पाकिस्तान भारत से नफरत करता है ये बात किसी से छुपी नहीं है लेकिन ये बात लगता है सब भूल गए  हैं की जिन्होंने पाकिस्तान माँगा और देश का बंटवारा करवाया वो भारत के ही मुसलमान थे ईरान या सऊदी अरब से नहीं आये थे और ये बात भी सच है की १९४७ में मुसलमानों की ९० % आबादी पाकिस्तान चाहती थी तभी ये बंटवारा संभव हुआ और आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब सब साथ मिल कर लड़ रहे थे कोई सपने में भी नहीं सोच सकता होगा की जब आज़ादी मिलने का समय आएगा तो वो ऐसे बदल जायेंगे।
                               आज़ादी के ६५ साल बाद भी उस मानसिकता में जादा बदलाव नहीं आया है उदहारण हैं कश्मीर में मुसलमानों का भारत से विरोध और पाकिस्तान से लगाव।  एक और उदहारण है १६ दिसंबर २०१३ को अख़बारों में खबर आई की रामेश्वरम के गावों में हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया   गया था।  और अकबरउद्दीन ओवैसी जैसे लोगों का इतना बड़ा जनाधार इस बात का उदहारण है की आज के हालत १९४७ से कहीं ज़यदा ख़राब हैं भारत के संविधान को भारत की सीमाओं में चुनौती मिल रही है अफज़ल गुरु जैसे आतंकवादिओं के मृत्युदंड पर आंसू बहाये जा रहे हैं उनकी और उनके परिवारों की भावनाओं का हवाला दे कर उन शहीदों का अपमान किया जा रहा है जिन्हों ने अपनी जान दे कर ऐसे आतंकवादिओं से देश की रक्षा की और उन भारतीओं का अपमान किया जा रहा है जो आतंकवाद का शिकार हुए।  क्या ये मानसिकता देशभक्तों की होती है ?????????????
                             ये सच है की भारत में बहुत से मुसलमान राष्ट्र भक्त हैं परन्तु ये भी एक कटु सत्य है की ऐसे रष्ट्रभक्तों की गिनती बहुत कम है।  आज भी भारत में ज़यदा गिनती उन मुसलमानों की है जो  मुल्क से पहले कौम के वफादार हैं।
                             मुसलमानों को आज ये शिकायत है की उनको शक की नज़रों से देखा जाता है।  में व्यक्तिगत सोच की बात नहीं करता वो सबकी भिन्न होती है।  बात सामाजिक स्तर पर सोच की है क्यूंकि व्यक्ति का समाज के दबाव में आ जाना आम बात है।  क्यूंकि बड़ी हिम्मत चाहिए समाज के विरुद्ध जा कर सत्य का साथ देने के लिए और सत्य ये है की बहुत से मुसलमानों ने व्यक्तिगत स्तर पर तो राष्ट्रभक्ति के उच्चतम उदहारण प्रस्तुत किये हैं जो सभी भारतियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत्र हैं परन्तु सामाजिक स्तर पर जो उदहारण हैं वो भारत के बंटवारे और पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिन्दुओं पर बर्बर अत्यचार और मानवाधिकार हनन के हैं। गोधरा काण्ड को भी हिन्दू समाज भूल नहीं सका है जो बिना किसी उकसावे के किया गया कृत्या था और असम में हिन्दुओं का नरसंहार की यादें भी ताज़ा हैं।  
                     अगर मुसलमानोंको ये लगता है की भारत में उनके साथ अत्यचार हुआ है तो ज़रा पाकिस्तान में हिन्दुओं की हालत देखें फिर बोलेन जितनी आज़ादी उन्हें हिंदुस्तान में है उतनी तो सऊदी अरब में नहीं है न ही अमेरिका में हैं।  इसलिए पहले भरोसा करना सीखें और सामाजिक स्तर पर खुद में बदलाव लाएं बिना दबाव या बहकावे ए हुए तथ्यों का आकलन करें और दूसरों के नज़रिये को समझने की कोशिश करें सत्य को पहचानें और भारत के हितों को सर्वोपरि मान कर कर्म करें तभी आप अखंड भारत के निर्माण में योगदान दे पाएंगे अन्यथा एक और पाकिस्तान बनाने की कोशिशों के औज़ार बन के रह जायेंगे।
                                                       वन्दे मातरम।  

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